मोहन राकेश हिनà¥à¤¦à¥€ के निरीह-से सामानà¥à¤¯ नाटककार à¤à¤° न होकर ‘थिà¤à¤Ÿà¤° à¤à¤•à¥à¤Ÿà¥€à¤µà¤¿à¤¸à¥à¤Ÿâ€™ à¤à¥€ थे। इसीलिठउनके ‘नाटà¥à¤¯-विमरà¥à¤¶â€™ का दायरा केवल नाटक-लेखन और उससे जà¥à¥œà¥‡ सवालों के शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯-सैदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤• विवेचन-विशà¥à¤²à¥‡à¤·à¤£ तक ही सीमित नहीं था। उनकी पà¥à¤°à¤®à¥à¤– चिनà¥à¤¤à¤¾ आधà¥à¤¨à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ रंग-दृषà¥à¤Ÿà¤¿ की तलाश/उपलबà¥à¤§à¤¿ और उसके विशà¥à¤µ- सà¥à¤¤à¤°à¥€à¤¯ विकास की थी। यही कारण है कि वह à¤à¤•ांकी, रेडियो नाटक, नाटà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¾à¤¦ और हिनà¥à¤¦à¥€ नाटक तथा रंगमंच का à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• विकास-कà¥à¤°à¤® से समगà¥à¤° विवेचन करने के बाद सीधे ‘नाटककार और रंगमंच’, ‘रंगमंच और शबà¥à¤¦â€™, ‘शबà¥à¤¦ और धà¥à¤µà¤¨à¤¿â€™ तथा शà¥à¤¦à¥à¤§ और नाटकीय शबà¥à¤¦ की खोज के साथ-साथ रंगकरà¥à¤® में शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ की बदलती à¤à¥‚मिका को रेखांकित करते हैं। यही नहीं, समकालीन हिनà¥à¤¦à¥€ रंगकरà¥à¤® की अनेक वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• समसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं से जूà¤à¤¨à¥‡ के साथ-साथ राकेश फ़िलà¥à¤® और टेलीविजन की लगातार बà¥à¤¤à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के समकà¥à¤· रंगमंच के मूल तरà¥à¤• और à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ के बारे में à¤à¥€ गमà¥à¤à¥€à¤° चिनà¥à¤¤à¤¨-मनन करते हैं। सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है कि राकेश का नाटà¥à¤¯-विमरà¥à¤¶ सà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤à¤µ पर आधारित, गमà¥à¤à¥€à¤°, बहà¥à¤†à¤¯à¤¾à¤®à¥€ और अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है। परनà¥à¤¤à¥ इस विषय से समà¥à¤¬à¤¦à¥à¤§ राकेश की सारी सामगà¥à¤°à¥€ अब तक हिनà¥à¤¦à¥€-अंगà¥à¤°à¥‡à¥›à¥€ की पतà¥à¤°-पतà¥à¤°à¤¿à¤•ाओं और पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•ों में लेखों, साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ारों, टिपà¥à¤ªà¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं, परिसंवादों à¤à¤µà¤‚ समीकà¥à¤·à¤¾à¤“ं के रूप में इधर-उधर बिखरी होने के कारण सहज उपलबà¥à¤§ नहीं थी। यहाठराकेश के नाटà¥à¤¯- विमरà¥à¤¶ को, उसकी चिनà¥à¤¤à¤¨-पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ के विकास-कà¥à¤°à¤® में, à¤à¤• साथ पà¥à¤°à¤•ाशित किया गया है। आशा है, यह पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• मोहन राकेश के पà¥à¤°à¤¬à¥à¤¦à¥à¤§ पाठकों, अधà¥à¤¯à¥‡à¤¤à¤¾à¤“ं और रंगकरà¥à¤® के साहसी पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤¾à¤“ं, पà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤·à¤•ों-समीकà¥à¤·à¤•ों के लिठनिशà¥à¤šà¤¯ ही उपयोगी और सारà¥à¤¥à¤• होगी|