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Nind Thi Aur Raat Thi
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‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में à¤à¤• सà¥à¤¤à¤° पर जहाठसविता सिंह के उन सरोकारों और विशà¥à¤µ-दृषà¥à¤Ÿà¤¿ की निरनà¥à¤¤à¤°à¤¤à¤¾ है जिनके कारण पिछले संगà¥à¤°à¤¹ ‘अपने जैसा जीवन’ को विपà¥à¤² सराहना मिली, तो अनà¥à¤¯ सà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ पर उस अनूठे और सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• विकास की अदà¥à¤à¥à¤¤ छवियाठà¤à¥€ हैं जिसकी जड़ें हमारे संशà¥à¤²à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ यथारà¥à¤¥ में बसती हैं। पिछली सदी के नवें दशक में कावà¥à¤¯- सकà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤¾ की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ करनेवाली सविता सिंह की रचनाओं ने सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-विमरà¥à¤¶ के गहरे आशयों से संयà¥à¤•à¥à¤¤ सांसà¥à¤•ृतिक बोध के लिठहमारी à¤à¤¾à¤·à¤¾ में नयी जगह बनायी है और हिनà¥à¤¦à¥€ कविता के समकालीन सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° को समà¥à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ के नठइलाके में पहà¥à¤à¤šà¤¾à¤¯à¤¾ है, यह कहना अतिकथन नहीं लगता कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि नà¥à¤¯à¤¾à¤¯, शकà¥à¤¤à¤¿ और कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ के लिठसंघरà¥à¤· करनेवाली नयी सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚, सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨à¥‹à¤‚ और सामथà¥à¤°à¥à¤¯ से पूरà¥à¤£ होती ये कविताà¤à¤ न सिरà¥à¤« नयी उमà¥à¤®à¥€à¤¦à¥‹à¤‚ की तरफ जाती हैं बलà¥à¤•ि à¤à¤• पà¥à¤°à¤•ार की सामाजिक-सांसà¥à¤•ृतिक कà¥à¤·à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤¤à¤¿ का à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ à¤à¥€ दिलाती हैं। ‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में आकà¥à¤² यथारà¥à¤¥ और सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨à¤®à¤¯à¤¤à¤¾ का दà¥à¤µà¤‚दà¥à¤µ है जिसकी गतिमानता हमारे समय के मानवीय मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ वाले यथारà¥à¤¥ को विकृत करनेवाली या कि उसके रूपों को धà¥à¤à¤§à¤²à¤¾ करनेवाली ताकतों के खिलाफ बड़ी सावधानी से अपना काम करती है। ये कविताà¤à¤ काफी कà¥à¤› तोड़ती हैं, लेकिन तोडऩे के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ या कई बार ज़रूरत होने पर उसके साथ-साथ ही, रचती à¤à¥€ चलती हैं। इस दà¥à¤¹à¤°à¥€ जि़मà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ वाली सकà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤¾ के ज़रिठसविता सिंह की कविताà¤à¤ हिनà¥à¤¦à¥€ जाति के सामूहिक मन का, उस मन के मरà¥à¤® का, पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¸à¤‚सà¥à¤•ार करती हैं—आतà¥à¤®à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ से दीपà¥à¤¤ विनमà¥à¤°à¤¤à¤¾ के साथ, जिसमें दृषà¥à¤Ÿà¤¿ की सफाई और उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ की दृढ़ता पà¥à¤°à¤à¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¾à¤¦à¥€ सतà¥à¤¤à¤¾à¤“ं के वरà¥à¤šà¤¸à¥à¤µ को ही नहीं, कई बार उनके छल à¤à¤°à¥‡ उदार-à¤à¤¾à¤µ को à¤à¥€ नेसà¥à¤¤à¤¨à¤¾à¤¬à¥‚द करने पर आमादा दीखती हैं। ‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में पीड़ा और अवसाद का à¤à¤¾à¤µ à¤à¥€ दम तोड़ता आखिरी अहसास नहीं है बलà¥à¤•ि अपने आवेग-संवेग से हमें आतà¥à¤®à¤¾ के उस सूने में ले जाता है जहाठशायद हम कà¤à¥€ गये न थे और सच के वे बिमà¥à¤¬ पाये न थे जो अचानक खà¥à¤¦ को वहाठपà¥à¤°à¤•ट करने लगते हैं। इन कविताओं में पà¥à¤°à¤•ृति, समय के सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤•रण और à¤à¤¸à¥€ ही अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के माधà¥à¤¯à¤® से अपने ‘आतà¥à¤®à¤šà¥‡à¤¤à¤¸ आतà¥à¤®à¤¨â€™ के आविषà¥à¤•ार की कोशिश है। ‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-विमरà¥à¤¶ की तरà¥à¤•शीलता का कावà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• आà¤à¥à¤¯à¤‚तर, सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-असà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ की पीड़ा, उदगà¥à¤° à¤à¤¨à¥à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¯à¤¤à¤¾, सानà¥à¤¦à¥à¤°à¤¤à¤¾ और संघरà¥à¤· सहजता की जिस ज़मीन पर उजागर हà¥à¤ हैं वह सचमà¥à¤š नयी खोज और आशà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤à¤¿ की ज़मीन है।.
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Rajkamal Prakashan
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