जà¥à¤žà¤¾à¤¨ चतà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦à¥€ का यह पाà¤à¤šà¤µà¤¾à¤ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ है। इसलिठउनके कथा-शिलà¥à¤ª या वà¥à¤¯à¤‚गà¥à¤¯à¤•ार के रूप में वह अपनी औपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤• कृतियों को जो वाग-वैदगà¥à¤§à¥à¤¯, à¤à¤¾à¤·à¤¿à¤•, शाबà¥à¤¦à¤¿à¤• तà¥à¤°à¥à¤¶à¥€, समाज और समय को देखने का à¤à¤• आलोचनातà¥à¤®à¤• नज़रिया देते हैं, उसके बारे में अलग से कà¥à¤› कहने का कोई औचितà¥à¤¯ नहीं है। हिनà¥à¤¦à¥€ के पाठक उनके 'नरक-यातà¥à¤°à¤¾', 'बारामासी' और 'हम न मरब' जैसे उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ के आधार पर जानते हैं कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी औपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤• कृतियों में सिरà¥à¤« वà¥à¤¯à¤‚गà¥à¤¯ का ठाठखड़ा नहीं किया, न ही किसी à¤à¥€ $कीमत पर पाठक को हà¤à¤¸à¤¾à¤•र अपना बनाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वà¥à¤¯à¤‚गà¥à¤¯ की नोक से अपने समाज और परिवेश के असल नाक-नकà¥à¤¶ उकेरे।इस उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ में à¤à¥€ वे यही कर रहे हैं। जैसा कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¥‚मिका में विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ किया है यहाठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बाज़ार को लेकर à¤à¤• विराट फैंटेसी रची है। यह वे à¤à¥€ मानते हैं कि बाज़ार के बिना जीवन समà¥à¤à¤µ नहीं है। लेकिन बाज़ार कà¥à¤› à¤à¥€ हो, है तो सिरà¥à¤« à¤à¤• वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ ही जिसे हम अपनी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ के लिठखड़ा करते हैं। लेकिन वही बाज़ार अगर हमें अपनी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ और समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ के लिठइसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करने लगे तो?आज यही हो रहा है। बाज़ार अब समाज के किनारे बसा गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤• की राह देखता à¤à¤• सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾-तंतà¥à¤°-à¤à¤° नहीं है। वह समाज के समानानà¥à¤¤à¤° से à¤à¥€ आगे जाकर अब उसकी समà¥à¤ªà¥à¤°à¤à¥à¤¤à¤¾ को चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ देने लगा है। वह चाहने लगा है कि हमें कà¥à¤¯à¤¾ चाहिठयह वही तय करे। इसके लिठउसने हमारी à¤à¤¾à¤·à¤¾ को हमसे बेहतर ढंग से समठलिया है, हमारे इंसà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚कà¥à¤Ÿà¤¸ को पà¥à¤¾ है, समाज के रूप में हमारी मानवीय कमज़ोरियों, हमारे पà¥à¤¯à¤¾à¤°, घृणा, गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡, घमंड की संरचना को जान लिया है, हमारी यौन-कà¥à¤‚ठाओं को, परपीड़न के हमारे उछाह को, हतà¥à¤¯à¤¾ को अकà¥à¤²à¤¾à¤¤à¥‡ हमारे मन को बारीकी से जान-समठलिया है, और इसीलिठकोई आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ नहीं कि अब वह चाहता है कि हमारे ऊपर शासन करे।इस उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ में जà¥à¤žà¤¾à¤¨ चतà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦à¥€ बाज़ार के फूलते-फलते साहस की, उसके आगे बिछे जाते समाज की और अपनी ताकत बटोरकर उसे चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ देनेवाले कà¥à¤› बिरले लोगों की कहानी कहते हैं।